इस आधुनिकता में माता पिता और बच्चे के रिश्ते में दूरिया क्यों ?



अंत तक पूरा पढ़े आपके लिए जरूर कुछ नया होगा।  पसंद आये तो उस इंसान के साथ यह शेयर करे जिसे आप यह कहना चाहते है लेकिन कह नहीं पा रहे। 

इस आधुनिकता में माता पिता और बच्चे के रिश्ते में नजदीकियाँ कम होने का मुख्य कारण निम्न प्रकार से है:-  

  1. माता पिता की बच्चों से ज्यादा अपेक्षा 
  2. बच्चो की माता पिता से ज्यादा अपेक्षा   
  3. बच्चे का स्वयं के प्रति ज्यादा महत्वाकांक्षी होना 
  4. सफलता व् असफलता की परिभाषा 

माता पिता की बच्चों से ज्यादा अपेक्षा  

बच्चे की 10th व 12th का समय बच्चे के जीवन का टर्निंग पॉइंट होता है। इस समय माता पिता और बच्चे के मन में भविष्य के प्रति बहुत सारे विचार चलते रहते है।
मान लीजिये बच्चा अभी किशोरावस्था में है और वह सोच रहा है कि जब 25 साल का होगा तब वह 
  • अपना भविष्य कैसा चाहता है ? 
  • कैसी लाइफ स्टाइल उस समय वह जीना चाहता है ? (गाडी, मकान, प्लॉट, सम्पत्ति, बिजनेस आदि )
  • उस समय किस प्रकार के लोग उससे जुड़े हो ?
  • उस समय कितना पैसा, नाम, स्वास्थ्य कमाना चाहता है ?
  • उस समय पारिवारिक और सामाजिक जीवन कैसा जीना चाहता है ?
  • उस समय उसका रोमेंटिक या लव लाइफ कैसी हो ? 
उपरोक्त प्रश्न लक्ष्य निर्धारण और लक्ष्य प्राप्ति के लिए दिशा/ रास्ता निर्धारित करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते है। इन सभी बातो को ध्यान में रखते हुए माता पिता व बच्चे के मध्य चार प्रकार के व्यवहार होते है:
  1. लक्ष्य निर्धारण माता पिता द्वारा करना 
  2. लक्ष्य प्राप्ति के लिए दिशा/ रास्ता माता पिता द्वारा निर्धारित करना
  3. लक्ष्य निर्धारण स्वयं बच्चे द्वारा करना 
  4. लक्ष्य प्राप्ति के लिए दिशा/ रास्ता स्वयं बच्चे द्वारा निर्धारित करना   
यह चार प्रकार के व्यवहार में अगर माता पिता व् बच्चो के मध्य विचारो में अंतर् होगा तब तब माता पिता और बच्चो के रिश्तो में दूरियाँ बढ़ती जाएगी।  और जब जब यह विचार भविष्य में याद आएंगे तब तब दूरिया और बढ़ेगी। और अगर यह विचार बच्चो और माता पिता के एक समान या मिलते जुलते है तो रिश्ते और मजबूत होते है दूरिया कम होती है। 
तातपर्य यह है कि बच्चा लक्ष्य और लक्ष्य प्राप्ति के लिए रास्ता वही चुने जो माता पिता चाहते है तो बच्चे और माता पिता का रिश्ता और मजबूत बनता जायेगा। 
लेकिन अगर बच्चे का लक्ष्य और लक्ष्य प्राप्ति के लिए रास्ता दोनों ही माता पिता की सोच के विपरीत या विरूद्ध हो तो तो बच्चे और माता पिता का रिश्ता और कमजोर बनता जायेगा, दूरिया बढ़ती जाएगी । 

बच्चों कि माता पिता से ज्यादा अपेक्षा  

बच्चे आजकल सब एडवांस हो गए।  यू ट्यूब पर मोटिवेशनल स्पीकर, साधु संतो आदि से बहुत सारा ज्ञान घर बैठे ले लेते है और उनको लगता कि उनको अब जीवन का सब सच पता चल गया है उनको पूरा अनुभव हो गया है अब उन्हें किसी दूसरे आदमी से ज्ञान लेने की आवश्यकता नहीं है। अब उन्होंने इतना ज्ञान ले लिया है कि अब वह ज्ञान दुसरो को भी बांटे तो भी कम नहीं होगा बल्कि और बढ़ेगा।  वह उस ज्ञान से समाज व देश में परिवर्तन लाना चाहते है। उस परिवर्तन की शुरुआत खुद से नहीं करके माता पिता से शुरुआत करते है। साथ ही साथ परिवार के और सदस्यों को भी उस ज्ञान को बाटते है और अप्रत्यक्ष रूप से यह अपेक्षा करते है कि जिस जिस को भी ज्ञान बाटा है वह सब लोग उसको अपने जीवन में उतारे। धीरे धीरे ज्ञान का घमंड होने लगता है। रिश्तो में दूरिया बढ़ने लगती है।  
बच्चे को पढ़ा लिखाकर उसकी पढ़ाई पर 3 4 लाख रूपये बड़ी बड़ी डिग्री के लिए खर्च करके भी बच्चा बेरोजगार रहकर घर वालो को माता पिता को ज्ञान बांटेगा तो गुस्सा नहीं आएगा तो क्या मजा आएगा क्या ? 
बच्चे अपने मोटिवेशनल स्पीकर, साधु संतो आदि के ज्ञान से माता पिता की सोच को बदलना चाहते है बजाए खुद की सोच में सकारात्मक परिवर्तन लाये। बजाए सफलता के आयाम स्थापित किये खुद को सफल मानते है और दुसरो में कमिया निकालते है।   
जूनून और जोश के साथ मेहनत करके , असफलताओ से सीखकर आगे बढ़ने की उम्र में मोटिवेशनल स्पीकर, साधु संतो आदि का ज्ञान बाटकर माता पिता, समाज के लोग, परिवार से दूरी बनाकर खुद को शिक्षित, प्रतिष्ठित समझने लगे है। 
गीता में लिखा है 
  1. ज्ञानयोगी 
  2. कर्मयोगी 
 जो इंसान ज्ञान योगी है उसका ज्ञान बिना कर्म किये अधूरा है। वह सफल नहीं हो सकता। 
लकिन जो कर्म योगी होता है वह इतना कर्म करता है कि अपने कर्म से सफलता के बड़े बड़े आयाम स्थापित करने का ज्ञान भी हो जाता है। 

इस प्रकार के बच्चे के सामने जब विपरीत परिस्तिथियाँ आती है तब बहुत जल्दी हार मन जाते है। उनकी असफलता से माता पिता की अपेक्षा उनसे टूट जाती है।  और घर में अशांति का माहौल हमेशा बना रहता है। 

बच्चे का स्वयं के प्रति ज्यादा महत्वाकांक्षी होना 

कुछ बच्चे अपने लक्ष्य के प्रति बहुत समर्पित होते है। इनकी इच्छाशक्ति बहुत तेज होती है।  दिन रात लगे रहते है मेहनत करते है पागलो की जैसे।  घर वालो को तो इनकी चिंता लगी रहती है कि कहि यह पागल नहीं हो जाए। ऐसे बच्चे दुनियादारी से कोई मतलब ही नहीं रखते। इनको तो खुद से मतलब है।  यह सफलता प्राप्ति के बड़े बड़े आयाम स्थापित करना चाहते है।  लीडर बनना चाहते है। यह लक्ष्य प्राप्ति तक के जिस दौर से गुजरते है उस समय बच्चे के जीवन में बहुत सारे उतार चढ़ाव आते है। बहुत बार असफल होना पड़ता है। 
बार बार असफलताओ की वजह से बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है क्योकि "हार का डर, जीत की उम्मीद" वाला जो वक्त होता हे ना कमाल का होता है। इस दौर में बच्चे और माता पिता में दूरिया बढ़ने लगती है स्वाभाविक है। 


सफलता व असफलता की परिभाषा 

माता पिता व बच्चे के अनुसार सफलता की परिभाषा में अंतर होना यह एक बहुत बड़ा कारण है माता पिता और बच्चे के रिश्ते में दूरिया बढ़ने का। 

सफलता की परिभाषा माता पिता के नजरिये से:
  1. सरकारी नौकरी लगना 
  2. खुद का मकान, गाडी
  3. घर में AC लगा हो
  4. बड़ा सरकारी अधिकारी हो 
  5. शहर में 2 3 प्लॉट / प्रॉपर्टी हो 
  6. बच्चे बड़ी बड़ी डिग्री हासिल करें 
  7. बच्चे (पोते ) बड़ी महंगी स्कूलों में पढ़े 
  8. जल्दी से जल्दी महीने के 30 40 हजार रूपये कमाकर माता पिता को देवे 
सफलता की परिभाषा बच्चे के नजरिये से:
  1. अपनी इच्छानुसार काम/ जॉब / बिजनेस करना 
  2. बड़ा सरकारी अधिकारी नहीं हो लेकिन  जिस काम में रूचि हो वह काम करना 
  3. असफलताओ से सीखकर सफल होना 
  4. चाहे एक छोटी दुकान/ बिजनेस ही हो लेकिन अपने ही गांव में हो 
  5. छोटे सर्टिफिकेट कोर्स कर लेंगे चाहे लेकिन पढ़ाई करके समय बर्बाद नहीं करेंगे उसके बजाए कुछ योग्यता विस्तार करेंगे 
  6. कम कमा ले चाहे लेकिन सुबह घर से व्यापर हेतु बाहर जाए सायं को वापिस अपने घर आजाये 
  7. शहर में 2 3 प्लॉट / प्रॉपर्टी नहीं हो लेकिन गधे की जैसे मेहनत नहीं करना 
  8. संतोष पूर्ण, शांतिपूर्वक, सुरक्षित जीवन जीना
माता पिता और बच्चो की सफलता की परिभाषा में अंतर् / विचारो में अंतर् ही मूल जड़ है। 
क्योकि विचार ही हमारी जिंदगी बनाते है, जैसे विचार होते है वैसा हम व्यवहार करते है।
बच्चे भी सफल होना चाहते है, और माता पिता भी यही चाहते है कि उनके बच्चे सफल होवे। 
लेकिन सफलता की परिभाषा में अंतर् होने की वजह से बच्चा अपनी सफलता की परिभाषा के अनुसार सफल होने के बाद भी माता पिता के अनुसार सफल नहीं है। वह बच्चा खुद की नजर में सफल है लेकिन माता पिता की नजर में सफल नहीं है।
माता पिता की सफलता की परिभाषा के अनुसार बच्चा सफल नहीं होता है तो माता पिता उसके साथ वैसा व्यवहार करेंगे जैसा किसी असफल  इंसान के साथ करते है चाहे बच्चा खुद की नजर में सफल ही क्यों ना हो।  
और यही एक बहुत बड़ा कारण है माता पिता और बच्चे के रिश्ते में दूरिया बढ़ने का। 


यह विचार किसी की भावनाओ को ठेश पहुंचाने के लिए नहीं है।   

मेरे यह विचारो से आप सहमत है तो कमेंट करें इसे जरूर शेयर करें। अपने माता पिता, बच्चो, रिश्तेदारों को शेयर करे जो इस परेशानी से जूझ रहा हे उसे शेयर करें उसे रास्ता दिखाए। 

Comments